फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव सोसायटी कृभको के चेयरमैन डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव पहले भारतीय हैं जो इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस-एशिया पेसिफिक के चेयरमैन चुने गए हैं। कृभको का चेयरमैन बनने से पहले वह नेशनल कोऑपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया (एनसीयूआई) के लंबे समय तक चेयरमैन रहे हैं। 19 मार्च, 1959 को जन्मे डॉ. यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य, झांसी निर्वाचन क्षेत्र से 14वीं लोकसभा के सदस्य और राज्यसभा सदस्य रहे हैं। 25-30 नवंबर को भारत में पहली बार इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (आईसीए) की महासभा और इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस हो रही है। यह भारतीय सहकारिता आंदोलन के लिए मील का पत्थर साबित होने वाली है। सम्मेलन की तैयारियों और भारतीय सहकारिता क्षेत्र के भविष्य को लेकर एसपी सिंह और अभिषेक राजा ने उनसे लंबी बातचीत की। पेश हैं उनके प्रमुख अंशः
इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (आईसीए) की महासभा और कॉन्फ्रेंस भारत में पहली बार आयोजित हो रही है, इससे भारतीय सहकारिता आंदोलन को कितनी मजबूती मिलेगी?
आईसीए की महासभा पहली बार भारत में हो रही है। यह एक ऐतिहासिक समय है जब पूरी दुनिया की कोऑपरेटिव से जुड़े लोग हमारे देश में इकट्ठा होंगे। महासभा के साथ-साथ एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया गया है जिसमें पूरी दुनिया से जुड़े हुए सहकारी क्षेत्र के लोगों का विचार विमर्श होगा। पूरी दुनिया के कोऑपरेटिव्स को एक दूसरे को सुनने का, जानने का, पहचानने का, कोऑपरेटिव सेक्टर में हमारा देश किस जगह खड़ा है, उनसे तुलना करने का एक जबरदस्त मौका मिला है। हम और क्या बेहतर कर सकते हैं, दूसरे लोगों से सीख कर हम उसे अपनाएंगे, हमलोग जो कर रहे हैं उसे दूसरे लोग अपनाएंगे। यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पूरी दुनिया के कोऑपरेटिव्स आकर अपना-अपना प्रेजेंटेशन देंगे। अभी हम 12-14 क्षेत्र में ही कोऑपरेटिव के माध्यम से काम कर रहे हैं। मगर मैं समझता हूं कि दुनिया में हर क्षेत्र में काम करने वाले कोऑपरेटिव्स हैं। हम चाहते हैं कि सहकारी क्षेत्र के माध्यम से सरकारी योजनाओं का काम हो तो उसका लाभ आखिरी व्यक्ति तक पहुंचेगा क्योंकि कोऑपरेटिव की पहुंच आखिरी व्यक्ति तक है।
इस अंतरराष्ट्रीय आयोजन से सहकारिता क्षेत्र को कारोबार बढ़ाने में कैसे मदद मिलेगी?
आईसीए की महासभा और इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस से हमारे देश के कोऑपरेटिव्स को बहुत अच्छा मौका मिला है अपने को बेहतर बनाने का। हम दूसरे लोगों से क्या-क्या ले सकते हैं, दूसरा, कोऑपरेटिव टू कोऑपरेटिव बिजनेस करने और बिजनेस बढ़ाने का मौका मिलेगा। इसके लिए हम जगह-जगह मीटिंग आयोजित कर रहे हैं। बहुत सारी वस्तुएं और उत्पाद हैं जिनका हम कोऑपरेटिव के माध्यम से निर्यात और आयात कर सकते हैं। यह कोऑपरेटिव के लिए बहुत ही सुनहरा अवसर है। सरकार ने निर्यात के लिए नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (एनसीईएल) का गठन किया है। इसके माध्यम से जिस भी कृषि उत्पाद का निर्यात किया जाता है उसकी खरीद सीधे कोऑपरेटिव से ही होती है। इसका लाभ यह है कि उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलती है और जो मुनाफा होता है वह व्यापारियों और बिचौलियों की बजाय सीधे उत्पादकों तक पहुंचता है।
आप आईसीए-एशिया पैसिफिक के पहले भारतीय अध्यक्ष हैं। सहकारिता क्षेत्र में युवाओं की भागादारी बढ़ाने के लिए क्या-क्या किया जा रहा है?
सहकारिता क्षेत्र में युवाओं की भागादीरी बढ़ाने के लिए समय-समय पर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हें शिक्षित और जागरूक बनाया जा रहा है। महिलाओं और पुरुषों में जो असमानता है उसके लिए भी काम करते हैं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में कोऑपरेटिव बनाकर उन्हें शिक्षित किया जा रहा है, कॉन्फ्रेंस आयोजित कर, लेक्चर आयोजित कर उन्हें कोऑपरेटिव से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। हमने सरकार को भी सुझाव दिया है कि कोऑपरेटिव का एक चैप्टर स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए ताकि सहकारिता की बुनियादी बातों से बच्चों को अवगत कराया जा सके। इसे एग्रीकल्चर वाले पाठ्यक्रम में जोड़ा जा सकता है ताकि उन्हें इसका बुनियाद ज्ञान हो सके। इससे उनमें सहकारिता के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और इसका ज्ञान पढ़ाई के दौरान ही हो जाएगा। मैं समझता हूं कि इस देश के हर व्यक्ति को इसका ज्ञान होना चाहिए और इसके लिए प्रयास किए जाने चाहिए। जो युवा रोजगार के लिए भटकते हैं वे कोऑपरेटिव बनाकर काम करें तो न सिर्फ अपना, बल्कि अन्य लोगों का भी जीवन बेहतर बना सकते हैं। कोऑपरेटिव में रोजगार के नए-नए अवसर पैदा करने की असीमित क्षमता है जिसका फायदा युवा उठा सकते हैं।
अलग मंत्रालय बनने के बाद सहकारिता के क्षेत्र में क्या नया बदलाव आया है?
जब से अलग मंत्रालय बना है तब से इस क्षेत्र में काफी बदलाव हुए हैं। खासकर प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसायटी जिसे पैक्स कहा जाता है, की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उन्हें नए-नए क्षेत्र में कारोबार करने की मंजूरी मिली है। पैक्स का कंप्यूटराइजेशन कर उन्हें सीधा राज्य और केंद्र से जोड़ दिया गया है। जो पैक्स ठप पड़े हैं उन्हें पुनर्जीवित किया जा रहा है और जिन पंचायतों में पैक्स नहीं हैं वहां इसका गठन किया जा रहा है। अगले पांच साल में डेयरी, मत्स्य सहित दो लाख नई सहकारी समितियों का गठन करने का लक्ष्य तय किया गया है। पैक्स को लगभग 35-40 तरीके के बिजनेस करने का मौका सरकार ने दिया है। इससे उन कोऑपरेटिव सोसायटीज की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जरूरत की चीजें पैक्स के माध्यम से सही कीमत पर और आसानी से उपलब्ध होंगी। इसके अलावा, गांव के लोग अपने उत्पाद कोऑपरेटिव को बेच सकेंगे और उन्हें गांव के लोग खरीद सकेंगे। उन्हें बाजार जाने की आवश्कता नहीं पड़ेगी और गांव का पैसा गांव में ही रहेगा, बल्कि बाहर का पैसा भी गांव में आएगा। इससे गांव का विकास निश्चित है क्योंकि खरीद-बिक्री से जो लाभ होगा उसे सहकारी समिति के सदस्यों में ही वितरित किया जाएगा। मैं समझता हूं कि सहकारिता क्षेत्र अब पहले से बहुत ज्यादा बेहतर होता जा रहा है।
आप फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव सोसायटी कृभको के अध्यक्ष भी हैं। कृभको की क्या स्थिति है?
आज की तारीख में कृभको अच्छी स्थिति में है। पहले हम सालाना 15 लाख टन यूरिया का उत्पादन करते थे। अब सालाना 50-60 लाख टन यूरिया और डीएपी का उत्पादन कर रहे हैं। हमने दो सब्सिडियरी बनाई है। एक प्रोसेसिंग के लिए और एक निर्यात के लिए। प्रोसेसिंग सब्सिडियरी के तहत एक एथेनॉल प्लांट लगाया है। इसका फायदा मक्का किसानों को मिल रहा है और उन्हें उनकी पैदावार की उचित कीमत मिल रही है। इसी तरह, कृषि उत्पादों का निर्यात भी कर रहे हैं।